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आम आदमी पार्टी का कहना है कि दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले पर भाजपा पूरी तरह से झूठ बोल रही। शीला दीक्षित सरकार के दौरान, सीएम के पास ट्रांसफर पोस्टिंग की सभी शक्तियां थीं। जैसे ही आम आदमी पार्टी ने 2015 में सरकार बनाई, मोदी सरकार ने एक नोटिफिकेशन के जरिए यह अधिकार चुनी सरकार से ले लिया। 8 साल की क़ानूनी लड़ाई के बाद 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा कि केंद्र का नोटिफिकेशन गलत था और सर्विसेज का अधिकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास सर्विसेज का अधिकार क्यों होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास तीन संवैधानिक सिद्धांतों के आधार पर सर्विसेज का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस सिद्धांत के आधार पर किसी भी राज्य सरकार की ताकत छिनी नहीं जा सकती। अगर केंद्र सरकार को ही ये सारी ताकत देनी होती तो देश के संविधान निर्माता एक संघीय ढांचा क्यों बनाते? लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आठ दिन बाद ही केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर दिल्ली की चुनी हुई सरकार से ट्रांसफर -पोस्टिंग का अधिकार फिर छीन लिया‌।

आम आदमी पार्टी का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत दिल्ली में चुनी हुई सरकार बनाई है। विधानसभा बनाई है। इसलिए लोकतंत्र के सिद्धांत के आधार पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास ये ताकत है कि जिस जनता ने उसे वोट दिया है उस जनता की इच्छा को लागू करे। एक संवैधानिक सिद्धांत है इसलिए ये जरुरी है कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के प्रति अफसरों की जबावदेही हो वरना चुनी हुई सरकार जनता की इच्छा को लागू नहीं कर पायेगी। इसलिए अफसरों की ट्रान्सफर पोस्टिंग, भ्रष्ट अफसरों पर एक्शन लेने की ताकत दिल्ली सरकार के पाह है।

लैंड, लॉ एंड आर्डर और पुलिस को छोड़कर दिल्ली में बाकि निर्णय लेने का अधिकार अरविन्द केजरीवाल के पास है और एलजी की बाध्यता है कि इन तीन विषयों के अलावा वे चुनी हुई सरकार के हर निर्णय को माने।

रात के अँधेरे में सुप्रीम कोर्ट की 6 हफ्ते की छुट्टी होने के बाद चुपके से चोर दरवाजे से केंद्र सरकार यह गैर-संवैधानिक अध्यादेश लेकर आई। वो सभी जानते है कि ये अध्यादेश गैर-संवैधानिक,गैर लोकतांत्रिक है और सुप्रीम कोर्ट इस अध्यादेश को तुरंत पलट देगा इसलिए कोर्ट की छुट्टी का इन्तजार करते हुए केंद्र सरकार ये अध्यादेश लेकर आई और ये सोचा कि 6 हफ्ते तक जबतक सुप्रीम कोर्ट की छुट्टी है तबतक है इस गैर-संवैधानिक अध्यादेश दिल्ली के लोगों के काम को रोक लें।

अब जो गैर-संवैधानिक अध्यादेश आया है, उसके अनुसार दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सर्विसेज पर कोई भी कानून बनाने का अधिकार नहीं है। दिल्ली में ट्रान्सफर पोस्टिंग के लिए एक नई ऑथिरिटी ‘नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी’ बनाई जाएगी। इस अथॉरिटी में 3 सदस्य होंगे और इसके चेयरपर्सन दिल्ली के मुख्यमंत्री होंगे। इसके सदस्य दिल्ली के मुख्य सचिव और गृह सचिव होंगे लेकिन दिल्ली के चीफ-सेक्रेटरी को गृह सचिव कोख चुनी हुई सरकार नहीं चुनेगी इन्हें केंद्र सरकार चुनेगी। इस हिसाब से इस नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्यमंत्री चेयरपर्सन तो होंगे लेकिन वो निर्णय नहीं ले पाएंगे। क्योंकि इस अध्यादेश के अनुसार ये अथॉरिटी बहुमत से फैसला लेगी और अगर गलती से इस अथॉरिटी ने कोई ऐसा निर्णय लिया जो केंद्र को पसंन्द नहीं तो उस निर्णय को एलजी पलट सकेंगे।

केंद्र का अध्यादेश इस कारण असंवैधानिक है?

ये अध्यादेश स्पष्ट तौर पर गैरसंवैधानिक है और केंद्र सरकार के पास इसे लाने की ताकत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के पैरा संख्या 160 में कहा है कि- “एनसीटी दिल्ली के प्रशासन में भारतीय संघ की भागीदारी संवैधानिक प्रावधानों द्वारा सीमित है और आगे कोई भी विस्तार शासन की संवैधानिक योजना के अनुरूप होगा।“

यानी सुप्रीम कोर्ट को भी शक था कि केंद्र सरकार इस आदेश को पलटने की कोशिश करेगी कि वो गैर-क़ानूनी तरीके से दिल्ली सरकार की ताकत को कम करे इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश से केंद्र के लिए इस रास्ते को बंद कर दिया।आप नेता आतिशी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से साफ़ है कि जो अध्यादेश आया वो गैर-संवैधानिक, गैर-लोकतांत्रिक है।

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