दिल्ली में निजी स्कूलों की फीस बढ़ाकर शिक्षा माफियाओं को फायदा पहुंचाने के बाद भाजपा सरकार अब प्राइवेट अस्पतालों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी अस्पतालों को बर्बाद कर रही है। यही वजह है कि जानबूझ कर सरकारी अस्पतालों में सर्जिकल उपकरण, ग्लब्स व दवाओं की कमी की जा रही है।उधर, स्वास्थ्य मंत्रालय ने अस्पतालों द्वारा दवाइयों की खरीद पर रोक लगा रखी है ,अस्पताल अधीक्षकों को अपने स्तर पर दवा खरीद की अनुमति नहीं दी जा रही है। परिणाम स्वरूप सरकारी अस्पतालों में हाहाकार मचा हुआ है। भाजपा सुविधाओं का अभाव दिखाकर स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों में देना चाहती है। शनिवार को “आप” मुख्यालय पर प्रेस वार्ता कर दिल्ली प्रदेश संयोजक सौरभ भारद्वाज ने ये बातें कहीं।
उधर, “आप” के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने भी सरकारी अस्पतालों में मरीजों को मुफ्त दवा नहीं मिलने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने एक्स पर कहा कि भाजपा ने 6 महीनों में ही दिल्ली के अस्पतालों का क्या हाल कर दिया है? आज दिल्ली की जनता दवाई, स्ट्रेचर और ग्लव्स तक के लिए तरस रही है। ये वही दिल्ली है जहाँ अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री रहते हुए बड़ी मुश्किल से इन अस्पतालों को ठीक किया था और यह सुनिश्चित किया था कि किसी भी सरकारी अस्पताल में आम आदमी को दवाई बाहर से नहीं खरीदनी पड़े, लेकिन भाजपा ने 6 महीनों में सब बर्बाद कर दिया।
“आप” मुख्यालय पर प्रेस वार्ता कर सौरभ भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली में भाजपा की सरकार को करीब आठ महीने हो गए हैं। इस समय दिल्ली के सरकारी अस्पतालों की हालत बहुत खराब है। सरकारी अस्पतालों के इतने बुरे हाल कभी नहीं थे। एक समय था जब दिल्ली सरकार के अस्पतालों में सभी दवाइयां मुफ्त मिलती थीं, क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने सभी दवाइयां मुफ्त कराई थीं, सभी जांच भी मुफ्त होती थीं। योजना थी कि अगर दिल्ली सरकार के अस्पताल में एमआरआई, सीटी स्कैन नहीं हो रहा या कोई जांच नहीं हो पा रही तो निजी जांच केंद्र में भेजकर मुफ्त जांच कराई जाती थी। अगर कोई ऑपरेशन समय पर सरकारी अस्पताल में नहीं हो पा रहा था, मरीजों का बोझ ज्यादा है या सर्जन उपलब्ध नहीं होते थे तो निजी अस्पताल में इलाज कराया जाता था।
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि आज दिल्ली की आठ महीने पुरानी भारतीय जनता पार्टी की सरकार के दौरान सरकारी अस्पतालों में हाहाकार मचा हुआ है। भाजपा सरकार के आठ महीनों में दिल्ली के सरकारी अस्पतालों की हालत अभूतपूर्व रूप से खराब हो गई है। दवाइयां, सर्जरी के उपकरण, दस्ताने और प्रत्यारोपण जैसी आवश्यक सामग्री उपलब्ध नहीं हैं, जिससे मरीजों को अपनी जेब से दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं। यही हाल राम मनोहर लोहिया जैसे केंद्र सरकार के अस्पतालों की भी है।
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि भाजपा सरकार जानबूझकर स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। उन्होंने कहा कि अस्पतालों में दवाइयों की कमी पैदा करके मरीजों को निजी अस्पतालों की ओर धकेला जा रहा है। पहले अरविंद केजरीवाल सरकार में सभी दवाइयां और जांचें मुफ्त थीं, अगर सरकारी अस्पताल में सुविधा नहीं मिलती तो निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज कराया जाता था। लेकिन अब दिल्ली आरोग्य कोष का 80 करोड़ का सालाना बजट भी शून्य कर दिया गया है, जिससे फरिश्ते योजना समेत कई सुविधाएं बंद हो गईं। स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देशों के कारण दवाइयों की खरीद रुकी हुई है और अस्पताल अधीक्षकों को स्थानीय स्तर पर खरीद की अनुमति नहीं दी जा रही है। इससे मोहल्ला क्लीनिक, आरोग्य मंदिर और डिस्पेंसरी भी प्रभावित हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और उत्तराखंड से आने वाले मरीज भी परेशान हैं और मीडिया अब इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है, जबकि पहले टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स जैसी संस्थाएं सक्रिय रिपोर्टिंग करती थीं।