आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पंजाब से राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने मंगलवार को राज्यसभा में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का मुद्दा उठाया और पराली को खत्म करने के लिए कुछ अहम सुझाव भी दिए। इस दौरान उन्होंने पराली प्रबंधन के लिए किसानों को प्रति एकड़ 2,500 रुपए मदद देने का प्रस्ताव रखा, ताकि किसान पराली को जलने के बजाय उसका प्रबंधन कर सके। उन्होंने कहा कि हम एआई के बारे में बहुत बात करते हैं, लेकिन अब एक्यूआई के बारे में बात करने का समय है। पराली का सही तरीके से प्रबंधन तभी संभव है, जब केंद्र सरकार, राज्य सरकार के उपायों का भी समर्थन करे। वायु प्रदूषण पूरे उत्तर भारत की समस्या है। केंद्र सरकार को इसके लिए शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म दोनों समाधान पर काम करना चाहिए।।
आम आदमी पार्टी के पंजाब से राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने कहा कि उत्तर भारत ने आज एक धुएं की चादर ओढ़ी हुई है और हर सांस के साथ ना जाने कितनी सिगरेट और बीड़ी का धुआं हम अपने अंदर ले जा रहे हैं। वायु प्रदूषण सिर्फ दिल्ली का मुद्दा नहीं है बल्कि पूरे उत्तर भारत का मुद्दा है। सरहद, प्रदूषण तो समझता नहीं है और आज दिल्ली से कहीं ज्यादा वायु प्रदूषण भागलपुर, मुजफ्फरनगर, नोएडा, हापुड़, विदिशा, भिवानी, भिवाड़ी, आगरा और फरीदाबाद जैसे इलाकों में है। लेकिन क्योंकि वायु प्रदूषण का सारा दोष किसान पर मढ़ा जाता है, आज मैं उस किसान की आवाज उठाना चाहता हूं। आईआईटी की एक स्टडी बताती है कि पराली जलाना वायु प्रदूषण का एक कारण है, लेकिन इकलौता कारण नहीं है। फिर भी सारा दोष किसान को दिया जाता है। हम पूरा साल कहते हैं कि किसान हमारा भगवान है, हमारा अन्नदाता है। लेकिन जैसे ही नवंबर का महीना आता है तो हम कहते हैं कि किसान क्रिमिनल है, उसे जेल में डाला जाए, उस पर जुर्माना लगाए जाए। इसीलिए मैं कहना चाहता हूं कि कोई भी किसान जानबूझकर अपनी खुशी से पराली नहीं जलाता है बल्कि मजबूरी में जलाता है। इस साल हमारे सूबे पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 70 फीसदी की गिरावट देखी गई। जबकि मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं।
राघव चड्ढा ने कहा कि पंजाब ने धान की खेती क्यों शुरू की? क्योंकि देश का पेट पालना था, देश में अनाज की कमी थी। धान की खेती से पंजाब का भारी नुकसान हुआ। हमारा पानी 600 फीट नीचे चला गया। मिट्टी का क्षरण हो गया, वह भी तब जब चावल हमारी खुराक नहीं है। हम पंजाबियों की खुराक चावल नहीं है। धान की फसल कटने के बाद, जो पराली बचती है, उस पराली को साफ करने के लिए किसान के पास मात्र 10 से 12 दिन होते हैं। क्योंकि अगली फसल बोनी होती है। अगर 10 से 12 दिन में इस पराली को साफ न किया जाए तो अगली फसल की उपज गिर जाती है। इसीलिए किसान को मजबूरन पराली जलानी पड़ती है। अगर हम इसके कोई समाधान की बात करते हैं, हैप्पी सीडर और पेडीचॉपर जैसी मशीनों को चलाने के लिए बहुत ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है। 2 से 3 हजार रुपए प्रति एकड़ किसान की जेब से लगता है। इसीलिए जो किसान खेती से अपनी लागत नहीं निकाल पा रहा है, वो पैसे कहां से लाएगा। किसान मजबूरी में पराली जलाता है और सबसे ज्यादा नुकसान उस किसान और उसके परिवारों को होता है, जिनको उस जहरीली हवा में सांस लेनी पड़ती है।
राघव चड्ढा ने कहा कि मैं एक समाधान लाया हूं। अगर आज हम इस पराली से निजात पाने के लिए पंजाब, हरियाणा के किसान को भी ढाई हजार रुपए प्रति एकड़ देते हैं, तो पंजाब का एक भी किसान पराली नहीं जलाएगा। इसमें दो हजार रुपए भारत सरकार दे, पांच सौ रुपए पंजाब सरकार देगी और हम इस पराली की समस्या से शॉर्ट टर्म समाधान पा लेंगे। लंबे समय के लिए समाधान है क्रॉप डाईवर्शिफिकेशन यानि कि धान की खेती से हमें कॉटन, मक्का, दालें, ऑयल सीड्स की ओर बढ़ना होगा। हम एआई की तो बहुत बात करते हैं, हमें एक्यूआई की बात करनी होगी।