आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को वरिष्ठ नेता जस्मीन शाह द्वारा लिखी गई किताब ‘केजरीवाल मॉडल’ का पंजाब में पंजाबी संस्करण लॉन्च किया। उन्होंने इस मॉडल की खासियत बताते हुए कहा कि यह मॉडल ईमानदार गवर्नेंस पर आधारित है। यह सिर्फ ईमानदारी पर चल सकता है, भ्रष्ट सरकार के लिए यह मॉडल नहीं है। इस मॉडल का मानना है कि अच्छी शिक्षा-इलाज, बिजली-पानी, सामाजिक सुरक्षा और न्याय देना सरकार की जिम्मेदारी है। हमने दिल्ली में काम करके दिखाया कि अगर अच्छी नियत हो तो सरकार सरकारी स्कूल-अस्पताल, बिजली -पानी, सड़कें ठीक सबकुछ ठीक कर सकती है। जैसे ही हमने दिल्ली सरकार छोड़ी, भाजपा ने चार महीने में ही सब बर्बाद कर दिया, क्योंकि उसकी नीयत ठीक नहीं है। इस दौरान पंजाब के सीएम भगवंत मान, पंजाब प्रभारी मनीष सिसोदिया समेत अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।
जस्मीन शाह की किताब ‘केजरीवाल मॉडल’ को लॉन्च कर “आप” के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में अन्ना आंदोलन हुआ, उससे आम आदमी पार्टी निकली। 26 नवंबर 2012 को जब हम जंतर-मंतर पर पार्टी के रजिस्ट्रेशन के लिए इकट्ठा हुए, तो सारे बुद्धिजीवियों ने कहा कि इनकी जमानत जप्त होगी। 8 दिसंबर 2013 को दिल्ली चुनाव के नतीजे आए। एक साल में “आप” को 28 सीटें मिलीं और हमारी सरकार बन गई। वह सरकार 49 दिन चली और हमने इस्तीफा दे दिया। उन 49 दिनों में कुछ करिश्मा हुआ।
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे देश में भारी बहुमत हासिल किया। उनकी एक आंधी-सी आई थी। नवंबर में हरियाणा, महाराष्ट्र के चुनाव हुए, सारे चुनाव भाजपा जीतती गई। जबकि फरवरी 2015 में दिल्ली में दोबारा चुनाव हुए। किसी को उम्मीद नहीं थी कि हमारी सरकार फिर आएगी। लेकिन 70 में से 67 सीटें आईं। भाजपा को 3 और कांग्रेस को जीरो सीट मिली। उन 49 दिनों में कुछ ऐसा करिश्मा हुआ था कि दिल्ली के लोगों को बहुत पसंद आया। लोग इसे भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े से तुलना करते थे, जिसे कुछ लोगों ने रोक लिया। उसी तरह दिल्ली में मोदी जी का अश्वमेध घोड़ा रुक गया। फिर पांच साल सरकार चली और 2020 में 70 में से 62 सीटें आईं।
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पहली बार एक साल में सरकार बनना, दूसरी और तीसरी बार जबरदस्त बहुमत मिलने का मतलब था कि “आप” सरकार ने कुछ तो किया था। जस्मिन शाह ने वही सब कुछ इस किताब में पिरोने की कोशिश की है। उन्होंने इसे केजरीवाल मॉडल कहा, लेकिन समझना जरूरी है कि जब हमने 49 दिन की सरकार चलाई और 2015 में दोबारा सरकार बनी, तो हमारे सामने कोई खाका या मॉडल नहीं था। कोई किताब या थ्योरी नहीं थी। बस एक जुनून था कि देश और समाज के लिए कुछ करना है। मैं और मनीष सिसोदिया मिडिल क्लास बैकग्राउंड से आने वाले बहुत छोटे लोग थे। मैं तब इनकम टैक्स में जॉइंट कमिश्नर था। मैंने नौकरी से इस्तीफा दिया और ‘परिवर्तन’ नाम से एक छोटी-सी एनजीओ बनाई। तब मेरे पास पैसे नहीं थे।
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि जब हमने दिल्ली में सरकार बनाई और जो काम किए, वह उन 10 साल के झुग्गी अनुभव के नतीजा थे। झुग्गियों में हमने देखा कि सरकारी स्कूलों का बुरा हाल था। न डेस्क, न ब्लैकबोर्ड, न बाउंड्री वॉल। बच्चे खेलते रहते, टीचर पढ़ाते नहीं थे। स्कूलों का बेड़ा गर्क था। बच्चों का कोई भविष्य नहीं था। मां-बाप गरीब थे, प्राइवेट स्कूल में नहीं भेज सकते थे। कुछ दिन स्कूल भेजते, फिर सोचते कि स्कूल में क्या रखा है, बच्चे को काम पर लगा दो। बच्चा पढ़ता नहीं, बड़ा होकर गरीब बनता। अमीरों के बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़कर अमीर बनते। हमें लगता था कि 60-65 साल बाद भी देश में यह हाल है। सरकार एक स्कूल तक ठीक नहीं कर सकती?
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि योजना आयोग की एक रिपोर्ट आई थी कि सरकार स्कूल नहीं चला सकती, इसलिए पीपीपी मॉडल पर सारे सरकारी स्कूल कॉर्पाेरेट्स को दे देने चाहिए। सरकारी स्कूलों की जमीन बहुत ज्यादा है। इसे कॉर्पाेरेट्स को सौंप दो, ताकि वे जमीन का इस्तेमाल करके स्कूल चला सकें। यह सरकारी जमीन हड़पने का एक बड़ा जमीन घोटाला था। इसी तरह, अस्पतालों और बिजली का भी यही हाल था। जून 2014 में दिल्ली में 8-8 घंटे बिजली गुल रहती थी। 2013 में हमने चुनाव जीता। उससे पहले मैंने बिजली आंदोलन के तहत दिल्ली में 15 दिन का अनशन किया था। हजारों रुपये के बिजली बिल आ रहे थे और लोग चुका नहीं पाते थे। मैं खंभे पर चढ़कर तार जोड़ता था। बिजली लोगों की पहुंच से बाहर थी। पानी नहीं आता था, लेकिन 15,000-20,000 के बिल आते थे। इन सारे अनुभवों के साथ हम सरकार में आए।
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हमारा एक मकसद आम आदमी की जिंदगी में थोड़ी सहूलियत लाना था। आम आदमी को बिजली, पानी, बच्चों को अच्छी पढ़ाई, बीमार होने पर अच्छा इलाज चाहिए। लोग आजकल हमारे ‘फ्री-फ्री’ का मजाक उड़ाते हैं, लेकिन यह हमारा अनुभव और संघर्ष था। बिजली इतनी महंगी थी कि जिसके पास पैसा, वही बिजली ले सकता था। गरीब को बिजली नहीं मिलती थी।