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दिल्ली सर्विसेज एक्ट का हवाला देकर मुख्य सचिव के बाद अब प्रधान वित्त सचिव आशीष चन्द्र वर्मा ने भी चुनी हुई सरकार के आदेश को मानने से इन्कार कर दिया है। अपने 40 पन्नों की चिट्ठी में प्रधान वित्त सचिव ने साफ़ किया है कि वो चुनी हुई सरकार की बात नहीं मानेंगे और उन्हें यह अधिकार जीएनसीटीडी अमेंडमेंट एक्ट देता है। यह मामला जीएसटी रिफंड के मुद्दे से जुड़ा है। इस मुद्दे को लेकर पहले पूर्व वित्त मंत्री कैलाश गहलोत ने प्रधान वित्त सचिव को सरकार की तरफ से एक वकील नियुक्त कर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने का आदेश दिया था। उसका अनुपालन न होने के बाद मौजूदा वित्त मंत्री आतिशी ने भी यही आदेश दिया था, जिसे प्रधान वित्त सचिव ने मानने से इन्कार कर दिया।

इस संबंध में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा कि दिल्ली सेवा अधिनियम ने अधिकारियों को चुनी हुई सरकार के लिखित आदेशों का खुले तौर पर विरोध करने का लाइसेंस दे दिया है और इस वजह से अधिकारी चुनी हुई दिल्ली सरकार के मंत्रियों के आदेशों को मानने से इन्कार करने लगे हैं। क्या कोई राज्य या देश या संस्था इस तरह चल सकती है? यह कानून दिल्ली को बर्बाद कर देगा और भाजपा तो यही चाहती है। इस एक्ट को तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए।

प्रधान वित्त सचिव द्वारा चुनी हुई सरकार की बात न मानने पर दिल्ली की सर्विसेज मंत्री आतिशी ने प्रेस वार्ता कर कहा कि केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली पर थोपे गए जीएनसीटीडी एक्ट 2023 के कारण दिल्ली में संविधान, लोकतंत्र, संवैधानिक ढांचे की धज्जियां उड़ रही है। दिल्ली सर्विसेज एक्ट दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सारी शक्तियां छीन लेता है। उन्होंने कहा कि देश के संविधान ने भारत को एक लोकतंत्र बनाया है। लोकतंत्र का अर्थ है कि जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन। साथ ही, ट्रिपल चेन ऑफ़ अकाउंटबिलिटी सुनिश्चित होता है, जिसमें अफसरों की जबाबदेही मंत्री के प्रति, मंत्री की जबावदेही विधानसभा के प्रति और विधानसभा की जबावदेही जनता के प्रति होगी। इसे बार-बार सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि लोकतंत्र ट्रिपल चेन ऑफ़ अकाउंटबिलिटी से चलता है।

सर्विसेज मंत्री आतिशी कहा कि इसी तरह से देश में लोकतंत्र चलता है, लेकिन जीएनसीटीडी एक्ट चुनी हुई सरकार के प्रति अफसरों की जबाबदेही ख़त्म कर देता है। इसका सेक्शन 45जे अफसरों, मुख्य सचिव या किसी विभाग के सचिव को यह शक्ति देता है कि वो चाहे तो चुनी हुई सरकार के मंत्री के आदेश का क्रियान्वयन न करे।

सर्विसेज मंत्री ने कहा कि जीएनसीटीडी एक्ट का परिणाम है कि कुछ दिनों पहले मुख्य सचिव ने 10 पन्ने की चिट्ठी लिखकर कहा था कि वो चुनी हुई सरकार के आदेशों का पालन नहीं करेंगे। ये दिल्ली में चुनी हुई सरकार के खिलाफ अफसरों के बगावत की शुरुआत थी और अब दिल्ली के प्रधान वित्त सचिव ने भी 40 पन्ने की चिट्ठी लिखकर साफ़ कह दिया है कि वो चुनी हुई सरकार के मंत्री के आदेश नहीं मानेंगे।

उन्होंने कहा कि जो आदेश बतौर वित्त मंत्री कैलाश गहलोत ने 5 जून को दिया था और जो आदेश बतौर वित्त मंत्री मैंने 12 जुलाई को दिया था, प्रधान वित्त सचिव आशीष चन्द्र वर्मा ने 40 पन्ने की चिट्ठी भेज असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक जीएनसीटीडी एक्ट की वजह से इस आदेश को मानने से इन्कार कर दिया है। एक के बाद एक दिल्ली के अफसर कह रहे हैं कि हम चुनी हुई सरकार व उनके मंत्रियों की बात नहीं मानेंगे और हमें ये अधिकार जीएनसीटीडी अमेंडमेंट एक्ट देता है।

सर्विसेज मंत्री आतिशी ने कहा कि यह मामला एक कोर्ट केस का है, जहाँ जीएसटी रिफंड के मुद्दे पर हाईकोर्ट ने आदेश दिल्ली सरकार के पक्ष में नहीं दिया। इसपर दिल्ली सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया। पहले बतौर वित्त मंत्री कैलाश गहलोत ने 5 जून को प्रधान वित्त सचिव को आदेश दिए कि दिल्ली सरकार के एक वकील को चुन कर सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी जाए।| 5 जून के बाद दिल्ली के अफसर इस फाइल को घुमाते रहे और न तो वकील नियुक्त किया और न ही सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया। इसके बाद जब यह फाइल 12 जुलाई को मेरे पास आई तो मैंने आदेश दिए कि सुप्रीम कोर्ट में इस केस की एसएलपी फाइल की जाए और दिल्ली सरकार के एक वकील को इस केस के लिए चुना जाए। उसके बाद मुझे 2 दिन पहले प्रधान वित्त सचिव आशीष चन्द्र वर्मा की 40 पन्नों की चिट्ठी मिली, जिसमें वो कह रहे हैं कि हम चुनी हुई सरकार की बात नहीं मानेंगे।

सर्विसेज मंत्री आतिशी ने कहा कि अब रोजमर्रा के कामों में भी अगर अफसर, सेक्रेटरी, चीफ सेक्रेटरी चुनी हुई सरकार और उनके मंत्रियों की बात नहीं मानेंगे तो दिल्ली की जनता के काम कैसे होंगे? ये सब सिर्फ इसलिए हो रहा है, क्योंकि ये जीएनसीटीडी एक्ट गैर-क़ानूनी, गैर-संवैधानिक है और लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ा रहा है|

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