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केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली के लोगों पर थोपे गए कानून के परिणाम सामने आने लगे है| सर्विसेज मंत्री आतिशी द्वारा नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी और दिल्ली सरकार के विभागों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने के लिए दिए गए आदेश को मुख्य सचिव ने जीएनसीटीडी अमेंडमेंट एक्ट 2023 का हवाला देते हुए 10 पन्नों की चिट्ठी लिखकर इसे मानने से साफ़ इनकार कर दिया है| इस बाबत गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान साझा करते हुए सर्विसेज मंत्री आतिशी ने कहा कि, दिल्ली के लोगों पर जबरदस्ती थोपे क़ानून का हवाला देकर अगर अधिकारी चुनी हुई सरकार का आदेश नहीं मानेंगे तो आख़िरकार सरकार कैसे चलेगी? अगर अफसर ऐसी चिट्ठियां लिख कर चुनी हुई सरकार के फैसले मानने से मना करेंगे तो लोकतंत्र की धज्जियाँ,संविधान की धज्जियाँ उड़ जाएगी| लोकतंत्र में ‘ट्रिपल चेन ऑफ़ अकाउंटबिलिटी’ जहाँ अफसरों की जबाबदेही मंत्री के प्रति, मंत्री की जबावदेही विधानसभा के प्रति और विधानसभा की जबावदेही जनता के प्रति लेकिन जब अफसर चुनी हुई सरकार के मंत्री की बात मानने से मना कर देते है तो लोकतंत्र में जबाबदेही ख़त्म हो जाती है| दिल्ली की अफसरशाही ने ये तय कर लिया है कि ये अथॉरिटी नहीं चलेगी, इससे दिल्ली की जनता के काम रुकेंगे,उनके कामों में देरी होगी और जनता को नुकसान होगा|

सर्विसेज मंत्री आतिशी ने कहा कि, भारतीय संविधान ने भारत को एक लोकतंत्र बनाया है, जहाँ जनता वोट डालेगी, अपने प्रतिनिधि चुनेगी और वो प्रतिनिधि 5 साल तक जनता के लिए काम करेंगे| उनका काम सही है या नहीं, लोकतंत्र में इसे तय करने का अधिकार संविधान ने जनता को दिया है| लेकिन संविधान के खिलाफ जाते हुए, लोकतंत्र के खिलाफ जाते हुए केंद्र सरकार 11 अगस्त को जीएनसीटीडी अमेंडमेंट एक्ट 2023 लेकर आई| इसके अनुसार चाहे देश में लोकतंत्र हो, संविधान देश की जनता को ताकत देता हो लेकिन दिल्ली में निर्णय लेने का अधिकार दिल्ली की जनता के पास, उनके चुने जन-प्रतिनिधि के पास नहीं होगा बल्कि दिल्ली में निर्णय लेने का अधिकार अनिर्वाचित अफसरशाही के पास होगा, अनिर्वाचित उपराज्यपाल के पास होगा|

उन्होंने कहा कि इस एक्ट का सेक्शन 45(J)5 कहता है कि अगर कोई अफसर चाहे तो वह मंत्री का आदेश मानने से इनकार कर सकता है| इस सेक्शन के अनुसार दिल्ली सरकार में मुख्य सचिव चाहे तो वो मंत्री के दिए हुए आदेश को मानने और उसके क्रियान्वयन से मना कर सकते है| यानि इस कानून की ये धारा लोकतंत्र की धज्जिया उड़ा देती है | इसका परिणाम है कि, जब 16 अगस्त को बतौर सर्विसेज व विजिलेंस मंत्री आतिशी ने सेक्रेटरी सर्विसेज, सेक्रेटरी विजिलेंस को एक आदेश दिया| इसके जबाव में 21 अगस्त को दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार ने 10 पन्ने की चिट्ठी लिख कर जीएनसीटीडी अमेंडमेंट एक्ट 2023 का हवाला देते हुए चुनी हुई सरकार के मंत्री के आदेश को मानने से इनकार कर दिया| और स्पष्ट रूप से कह दिया कि हम चुनी हुई सरकार के मंत्री की बात नहीं मानेंगे| अपनी चिट्ठी में मुख्य सचिव नरेश कुमार ने कहा है कि, चुनी हुई सरकार के पास निर्णय लेने की कोई ताकत नहीं है, ये ताकत मुख्य सचिव के पास है, अफसरों के पास है| यानी इसका सीधा अर्थ ये हुआ कि आज एक अनिर्वाचित अफसरशाही तय कर रही है कि ये शहर कैसे चलेगा, सरकार कैसी चलेगी|

सर्विसेज मंत्री आतिशी ने कहा कि जब संविधान ने हमे देश को लोकतंत्र बनाया तो उसमे ढांचागत व्यवस्था बनाई कि दिल्ली की जनता या किसी भी राज्य की जनता अपने प्रतिनिधियों को चुन कर विधानसभा भेजेगी| वो विधानसभा कुछ प्रतिनिधियों को मंत्री बनाकर कैबिनेट में भेजेगी जो जनता के हित में फैसले लेगी, पॉलिसी बनाएगी और जनता द्वारा उसका क्रियान्वयन करवाएगी| ये ट्रिपल चेन ऑफ़ अकाउंटबिलिटी है जहाँ अफसरों की जबाबदेही मंत्री के प्रति, मंत्री की जबावदेही विधानसभा के प्रति और विधानसभा की जबावदेही जनता के प्रति होगी| लेकिन जब अफसर चुनी हुई सरकार के मंत्री की बात मानने से मन कर देते है तो लोकतंत्र में जबाबदेही ख़त्म हो जाती है|

इस विषय में सुप्रीम कोर्ट ने अपने संवैधानिक पीठ ने भी इस ट्रिपल चेन ऑफ़ अकाउंटबिलिटी की बात की थी| साथ ही ये भी स्पष्ट किया था एक गैर-जिम्मेदार और गैर-उत्तरदायी सिविल सेवा लोकतंत्र में शासन की गंभीर समस्या पैदा कर सकती है। यह एक संभावना पैदा करता है कि स्थायी कार्यकारिणी, जिसमें अनिर्वाचित सिविल सेवा अधिकारी शामिल हैं, जो सरकारी नीति के कार्यान्वयन में निर्णायक भूमिका निभाते हैं, ऐसे तरीकों से कार्य कर सकते हैं जो जनता की इच्छा की उपेक्षा करते हैं।

सर्विसेज मंत्री ने कहा कि, 16 अगस्त का आदेश नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी के विषय में था| इसमें दिल्ली सरकार ने फैसला किया था कि बेशक ये अथॉरिटी असंवैधानिक है,अवैध है और इसके गठन को हमने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है लेकिन फिर भी ये अभी देश का कानून है| तो इसका सम्मान करते हुए और दिल्ली की जनता के हित में दिल्ली सरकार ने ये फैसला लिया था कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार अलग अलग विभागों और नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी के बीच बेहतर समन्वय के लिए एक तंत्र बनाएगी| मुख्य सचिव ने इस फैसले को मानने से मना कर दिया|

क्या अब नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी जिसकी बैठक के लिए केजरीवाल सरकार ने एक तंत्र बनाया कि दिल्ली की जनता के काम न रुके ये जानते हुए भी की ये अथॉरिटी गैरकानूनी है| लेकिन दिल्ली की अफसरशाही ने ये तय कर लिया है कि ये अथॉरिटी नहीं चलेगी क्योंकि उन्होंने आदेश मानने से मना कर दिया| इससे दिल्ली की जनता के काम रुकेंगे,उनके कामों में देरी होगी और जनता को नुकसान होगा| अगर सरकार ने जो समन्वय तंत्र बनाया अगर उसे आज मुख्य सचिव मानने को तैयार नहीं है और उसके जबाव में 10 पेज की चिट्ठी लिख कर भेजते है कि आदेश नहीं मानेंगे तो ये अथॉरिटी कैसे चलेगी|

सर्विसेज मंत्री ने कहा कि ऐसे में इस कानून के बाद मुख्य सचिव चिट्ठी लिख कर भेजते है कि हम चुनी हुई सरकार के मंत्री के आदेश का पालन नहीं करेंगे| ये केवल शुरुआत है| उन्होंने कहा कि हो सकता है शिक्षा मंत्री होने के नाते दिल्ली की जनता जब एक नए स्कूल की मांग करें और मैं शिक्षा सचिव को आदेश दूँ कि नया स्कूल बनाना है तब तो शिक्षा सचिव मुड़कर ऐसा करने से मना कर सकते है| सरकार लोगों को फ्री दवाइयां देती है हो सकता है स्वास्थ्य सचिव ऐसी चिट्ठी लिख कर मना कर दे कि हम जनता को फ्री दवाइयां नहीं देंगे| सरकार फ्री बिजली देती है हो सकता है कल ऐसी चिट्ठी के माध्यम से उर्जा सचिव ऐसी चिट्ठी लिख कर चुनी हुई सरकार का आदेश मानने से मना कर दे| अगर अफसर ऐसी चिट्ठियां लिख कर चुनी हुई सरकार के फैसले मानने से मना करेंगे तो लोकतंत्र की धज्जियाँ,संविधान की धज्जियाँ उड़ जाएगी|

उन्होंने कहा कि, इस देश में अगर किसी चुनी हुई सरकार के फैसले पर, उनके काम पर अगर निर्णय लेने का अधिकार है तो वो सिर्फ और सिर्फ देश की जनता के पास है| ये अधिकार ब्यूरोक्रेसी के पास नहीं है, किसी अनिर्वाचित शक्ति के पास नहीं है| ऐसे में जबतक दिल्ली में ये गैर संवैधानिक कानून बना रहेगा लोकतंत्र की धज्जियाँ ऐसे हो उडती रहेगी|

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