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बिगड़ती अर्थव्यवस्था में पीएम के मुताबिक उनका ऑपरेशन तो सफल है लेकिन हक़ीक़त यह  है कि मरीज़ की मौत हो चुकी है: सिसोदिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को भारत में अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति को लेकर अपनी एक प्रस्तुति दी। हालांकि, अपने भाषण में पीएम ने देश की बिगड़ती आर्थिक व्यवस्था से निबटने का कोई तरीक़ा बताने कि बजाए इधर-उधर की बातें ज्यादा की।

पार्टी कार्यालय में प्रेस कॉंफ्रेस को सम्बोधित करते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली सरकार में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री जी ने भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर अपनी प्रस्तुति में देश की जनता से झूठ बोला है, उन्होंने अपने सम्बोधन में ये नहीं बताया कि देश की जीडीपी नीचे की तरफ़ क्यों जा रही है?, उन्होंने ये नहीं बताया कि आखिर क्या वजह है कि देश में रोज़गार पैदा होने कि बजाए लोगों की नौकरियां छूट रही हैं? देश में स्वास्थ्य और शिक्षा पर उनकी सरकार ने क्या काम किया है? इन सब के बारे में प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में ज़िक्र तक नहीं किया।

आज की तारीख़ में सारा बाज़ार ठंडा पड़ा हुआ है, लोगों के काम-धंधे बंद हो रहे हैं, फ़ैक्ट्रियां बंद हो रही हैं, प्रॉपर्टी बाज़ार धरातल पर पहुंच चुका है, रोज़गार पैदा होने कि बजाए नौकरियां छूट रही हैं, बिज़नेस बर्बाद हो गए हैं, खेती और किसान बेहद नाज़ुक दौर में पहुंच चुके हैं और ये बड़े शर्म की बात है कि इन सबके बावजूद भी पीएम मोदी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं: मनीष सिसोदिया, AAP नेता एंव दिल्ली के उपमुख्यमंत्री

उनके भाषण और झूठ को हम कुछ बिंदुओं से समझने की कोशिश करते हैं-

प्वाइंट 1: प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में मौजूदा आर्थिक संकट के बारे में सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों को ना केवल अनदेखा किया बल्कि देश से झूठ भी बोला है। यह सही है कि लोकतंत्र में हर कोई अपनी राय रखने का हकदार है, लेकिन पीएम अपने खुद के तथ्यों को ही छिपा रहे हैं!

  • प्रधानमंत्री जी ने कहा कि जीडीपी विकास दर केवल एक तिमाही में ही घटी है, यह पूरे देश को पता है कि जीडीपी विकास दर पिछली 6 तिमाहियों से लगातार नीचे की तरफ़ गोता लगा रही है। जनवरी-मार्च 2016 में 9.1% से, अप्रैल-जून 2017 में यह 5.7% के निचले स्तर पर आ गई है। अगर वह कहते हैं कि यह मामूली गिरावट है तो प्रधानमंत्री जी झूठ बोल रहे हैं। निश्चित रूप से उन्हें पता है कि 1 प्रतिशत की जीडीपी विकास दर घटने का अर्थ = 1.5 लाख करोड़ रुपये की राष्ट्रीय आय का नुकसान और लाखों नौकरियों का नुकसान है।
  • प्रधानमंत्री ने जीडीपी के कम आंकड़ों के बारे में कहा कि यूपीए सरकार ने भी तो बहुत बुरा प्रदर्शन किया था। लेकिन हम सभी जानते हैं कि यूपीए की अर्थव्यवस्था का संचालन विनाशकारी था और इसी वजह से देश की जनता ने भाजपा को अर्थव्यवस्था और देश चलाने का प्रभार दिया था। फिर भी अगर हम देखें तो यूपीए शासन के आखिरी दो वर्षों में जीडीपी विकास दर 6.1% थी जो कि भाजपा द्वारा जीडीपी सूत्र में किए गए बदलाव के बाद भी नीचे है।
  • सबसे ख़ास बात यह है कि प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था पर दिए गए अपने भाषण में रोजगार सृजन के मुद्दे पर बात तक नहीं की! उन्होंने 100 एजेंडा प्वाइंट गिनवाए जिनमें मूलभूत ढांचे (अधिक सड़कों का निर्माण, अधिक से अधिक एफडीआई आदि) के निर्माण की बात की, लेकिन उन्होंने एक बार भी यह नहीं बताया कि भाजपा सरकार ने कितनी नौकरियों का निर्माण किया? क्या उनकी प्राथमिकता में नौकरियां है ही नहीं? मुझे लगता है कि पीएम का कल का भाषण निश्चित रूप से एक सुबूत है कि भाजपा सरकार इस मोर्चे पर पूरी तरह से विफल रही है। उनके स्वयं की सरकार के श्रम ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि प्रतिवर्ष 1 करोड़ नौकरियों के वादे के खिलाफ, भाजपा सरकार ने 2014-15 में केवल 1.5 लाख नौकरियां और 2015-16 में 2.3 लाख नौकरियों का निर्माण किया। मार्च 2017 में ओईसीडी (35 विकसित देशों के एक संघ) द्वारा जारी किए गए एक बहु-देशीय सर्वेक्षण से पता चलता है कि 15-29 वर्ष की आयु के 30% भारतीय युवा ना तो नौकरी ही कर रहे हैं और ना ही शिक्षा ही ले रहे हैं – और यह बड़े शर्म की बात है कि यह चीन की तुलना में तीन गुना है!

प्वाइंट 2: ऐसे आर्थिक संकट के समय में ज़रुरत एक मज़बूत नेतृत्व की होती है जो बिगड़ती अर्थव्यवस्था के असली कारणों को ना केवल पहचाने बल्कि उन्हें स्वीकार भी करे, अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए एक रोड़-पैम भी तैयार करे। अफ़सोस कि देश के प्रधानमंत्री ये दोनों ही काम करने में विफल रहे हैं।

  • प्रधानमंत्री ने 55 मिनट के अपने भाषण में सिर्फ़ अपनी पीठ थपथपाने का ही काम किया लेकिन सच्चाई यह है कि देश की अर्थव्यवस्था बर्बादी हो रही है। अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने यह नहीं बताया कि नोटबंदी से कितनी नौकरियां गईं और जीएसटी से कितने व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ा है? प्रधानमंत्री जी ने यह नहीं बताया कि जीएसटी के बाद लोग इतने परेशान क्यों हैं? उन्होंने यह नहीं बताया कि पेट्रोल डीज़ल के दाम क्यों बढ़ रहे हैं? उन्होंने ये नहीं बताया कि देश की जीडीपी विकास दर नीचे की तरफ़ क्यों जा रही है? उन्होंने यह नहीं बताया कि देश में इस वक्त निजी निवेश पिछले 25 वर्षों की तुलना में निम्नतम स्तर पर क्यों गिर गया? प्रधानमंत्री की चिकनी-चुपड़ी बातों को सुनें तो ऐसा लगेगा कि – “’उनका ऑपरेशन तो सफल है’ लेकिन उसके उलट सच्चाई यह है कि मरीज मर चुका है।“
  • यह बेहद निराशाजनक था कि प्रधानमंत्री ने मौजूदा संकट के पीछे के कारकों के निदान की ना तो बात की और ना ही देश को ट्रैक पर वापस लाने के लिए कोई विशिष्ट उपायों की चर्चा ही की। उन्होंने बस सपने बेचने पर ही अपने भाषण के 55 मिनट बिता दिए, कुछ ऐसे बिंदु भी हैं जिनपर मोदी सरकार को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए और बताना चाहिए कि सरकार इनपर क्या कर रही है:
  • NPA संकट जो हमारे बैंकिंग क्षेत्र को कुचल रहा है
  • अभूतपूर्व कृषि संकट देशभर में फैल गया है
  • विनिर्माण क्षेत्र में भारी मंदी छाई हुई है
  • जीएसटी के क्रियान्वयन में गड़बड़ी थी जिसने छोटे और मझोले व्य़ापारियों को कुचल दिया है
  • बैंकों द्वारा प्रस्तावित उच्च उधार दरों में आज कंपनियां 11% से शुरू हो कर इससे भी ज्यादा का ब्याज़ लगा रही हैं जिसमें व्यापार करना बेहद मुश्किल है
  • रीयल-एस्टेट क्षेत्र में भारी गिरावट और मंदी है

प्वाइंट 3: प्रधानमंत्री की प्रस्तुति उनकी सीमित मानसिकता को दर्शाती है जिसके तहत उनका मानना है कि भारत बुनियादी ढांचे के निर्माण से ही विकास करेगा। ऐसा लगता है कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को लेकर केंद्र की भाजपा सरकार ना तो सोचती है और ना ही कुछ करने की उनकी योजना है।

  • सरकार को आर्थिक मोर्चे पर सलाह देने वाले समूह के सदस्यों की गंभीरता से समीक्षा करने की आवश्यकता है क्योंकि वो सिर्फ़ ढांचे पर ज़ोर दे रहे हैं जबकि महत्वपूर्ण यह है कि देश के नागरिकों पर निवेश होना चाहिए ताकि एक मज़बूत राष्ट्र का निर्माण हो – अगर मानव पूंजी अर्थात लोगों की शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और स्वास्थ्य की गुणवत्ता बेहतर होगी तो देश अपने आप तरक्की करेगा लेकिन अफ़सोस कि मोदी सरकार का इस तरफ़ कोई ध्यान नहीं है।
  • यह भाजपा सरकार की पूर्ण विफलता को ही दर्शाता है कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में नागरिकों के निर्माण और शिक्षा-स्वास्थ्य पर एक लाइन भी नहीं बोली। हमारा मानना है कि सड़कों और रेलवे का निर्माण करना आसान है, अंग्रेजों ने भी पूर्व में यह किया है, आज आप पुल तो बना देंगे लेकिन अगर देश का नागरिक स्वस्थ और शिक्षित ही नहीं होगा तो फिर उस पुल का क्या करेंगे? दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार ने शिक्षा-स्वास्थ्य पर जमकर खर्च किया है, लेकिन केंद्र सरकार ने पिछले 3 सालों में इस पहलू पर क्या किया है, इन आंकड़ों से जानिए:
  • भाजपा सरकार ने पिछले 3 वर्षों में स्वास्थ्य पर जो खर्च किया है वो सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ़ एक प्रतिशत (आर्थिक सर्वेक्षण 2017 में रिपोर्ट किया गया) ही है, जो कि 6% की वैश्विक औसत से काफ़ी नीचे है। इसकी तुलना में, दिल्ली राज्य अपनी जीडीपी का 12% ख़र्च अपने नागरिकों के स्वास्थ्य पर करती है।
  • भाजपा सरकार ने पिछले 3 वर्षों में, शिक्षा पर जो ख़र्च किया वो वास्तव में जीडीपी का सिर्फ़ 3.7% है, यह ख़र्च 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद का 4.6% था जो वर्तमान मोदी सरकार ने घटा दिया है। इसकी तुलना में, दिल्ली सरकार शिक्षा पर अपने राज्य जीडीपी का रिकॉर्ड 23% खर्च करती है।
  • पिछले 3 सालों से, राष्ट्रीय शिक्षा नीति विकसित करने के लिए भाजपा सरकार सिर्फ़ समितियों का ही गठन कर रही है, फिर भी आजतक एक भी नीति नहीं बन पाई है।
  • पिछले 3 सालों से, भाजपा सरकार ने देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और विचारों की स्वतंत्रता को कुचल कर रख दिया है।

प्रेस कॉंफ्रेंस में बोलते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता आशुतोष ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में अपने आलोचकों को “शल्य” की संज्ञा दी है, हम प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहते हैं कि अगर आलोचना करने वाले शल्य हैं तो पीएम साहब ये बताएं कि उनकी सरकार में दुर्योधन कौन है और शकुनी कौन है?

‘देश की मोदी सरकार सिर्फ़ इंफ्रा पर ख़र्च करने की ही सोचती है जबकि देश के लोगों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर ख़र्च करने के बारे में प्रधानमंत्री जी बात तक नहीं करते। दरअसल प्रधानमंत्री साहब का मॉडल सिर्फ़ रोड़ निर्माण का है जबकि आम आदमी पार्टी का मॉडल राष्ट्र-निर्माण का है क्योंकि आम आदमी पार्टी शासित दिल्ली सरकार अपने बजट और जीडीपी का सबसे ज्यादा ख़र्च अपने नागरिकों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर करती है जिसका ताज़ा उदाहरण एसोचैम का वो सर्वे है जिसमें दिल्ली सरकार के स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले 70 प्रतिशत माता-पिता दिल्ली सरकार के काम और मेहनत से संतुष्ट नज़र आए।‘

पूरी प्रेस कॉंफ्रेंस को यहां नीचे दिए गए लिंक पर देख सकते हैं-

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sudhir