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लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के सचिव को हर छह महीने में स्थानांतरित करके, इसे एक ‘नेतृत्वहीन’ निकाय में बदलकर प्रमुख बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को रोकने के दिल्ली के एलजी के कार्यों को केजरीवाल सरकार ने उजागर किया है। दिल्ली सरकार में सितंबर 2020 से लेकर अब तक पांच पीडब्ल्यूडी सचिव रहे हैं। औसतन हर छह महीने में नया पीडब्ल्यूडी सचिव बनाया गया है। यह पद वर्तमान में दिल्ली के एलजी द्वारा खाली रखा गया है, जिससे कई बुनियादी ढांचागत परियोजनाएं अटक गई हैं। पीडब्ल्यूडी सचिवों को ताश के पत्तों की तरह बदलने और पीडब्ल्यूडी को ‘मुखिया विहीन निकाय’ में बदलने के लिए दिल्ली के एलजी की आलोचना करते हुए‌ उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली सरकार राज्य के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए अथक प्रयास कर रही है। लेकिन एलजी के लगातार पीडब्ल्यूडी सचिव बदलने से प्रगति बाधित हुई है। यह एलजी कार्यालय की शक्तियों का दुरुपयोग और दिल्ली को एक विश्व स्तरीय शहर में बदलने के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के दृष्टिकोण को पटरी से उतारने का जानबूझकर किया गया प्रयास है।

विभाग के प्रमुख के रूप में पीडब्ल्यूडी सचिव 3 हजार से अधिक इंजीनियरों और अधिकारियों की टीम की अध्यक्षता करते है। प्रशासनिक और वित्तीय अनुमोदन प्रदान करते हैं। इसके अलावा समय पर शहर में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पूरा करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दिल्ली के एलजी सेवा विभाग के माध्यम से दिल्ली सरकार में सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग को नियंत्रित करते हैं। उनके द्वारा हर छह महीने में पीडब्ल्यूडी सचिव को स्थानांतरित करने के फैसले ने विभाव को एक ‘बिना मुखिया के निकाय’ में बदल दिया है। इसके जरिए पीडब्ल्यूडी में सुचारू रूप से काम करना असंभव बना दिया है। इसके परिणामस्वरूप परियोजना में देरी होती है।

सेवा विभाग के रिकॉर्ड से पता चलता है कि सितंबर 2020 से पांच आईएएस अधिकारियों ने पीडब्ल्यूडी सचिव का पद संभाला है। इसमें विकास आनंद सितंबर 2020 से मार्च 2021 तक, दिलराज कौर मार्च 2021 से मार्च 2022 तक, निखिल कुमार मार्च 2022 से अप्रैल तक 2022, एच राजेश प्रसाद मई 2022 से सितंबर 2022 तक और विकास आनंद नवंबर 2022 से फरवरी 2023 तक विभाग के सचिव रहे हैं। पिछले सप्ताह विकास आनंद के तबादले के बाद से यह पद खाली है, जिससे पीडब्ल्यूडी का पूरा काम ठप हो गया है।

इस तरह के लगातार बदलावों ने राष्ट्रीय राजधानी की कई महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को प्रभावित किया है। इनमें से कई की योजना आगामी जी- 20 शिखर सम्मेलन के मद्देनजर बनाई जा रही थी। प्रतिदिन लगभग 4 लाख वाहनों द्वारा उपयोग किए जाने वाले आश्रम फ्लाईओवर का निर्माण कार्य भी कई डेडलाइन के बावजूद पूरा नहीं हुआ है। कई प्रमुख बुनियादी ढांचागत परियोजनाएं दिल्ली के एलजी के कार्यों के कारण प्रभावित हुई हैं। यूरोपीय सड़कों के मॉडल पर 16 हिस्सों से शुरू होने वाली दिल्ली की 500 किमी की प्रमुख सड़कों का पुनर्विकास भी एलजी के कार्य से प्रभावित हुआ है।

पिछले साल दिल्ली सरकार ने भजनपुरा-यमुना विहार और आजादपुर-रानी झांसी रोड के बीच डबल डेकर फ्लाईओवर, शास्त्री पार्क में फ्लाईओवर, आश्रम-डीएनडी फ्लाईवे, आनंद विहार टर्मिनल-अप्सरा बॉर्डर, नगरी-गगन सिनेमा जंक्शन और लोनी चौक पर एलिवेटेड कॉरिडोर के निर्माण को मंजूरी दी थी। इसके अलावा अफ्रीका एवेन्यू, मोती बाग, सावित्री सिनेमा, आईटीओ, तिलक नगर जिला केंद्र, तिलक नगर मेट्रो, एंड्रयूज गंज, नेहरू प्लेस और पंजाबी बाग, पूसा रोड, अणुव्रत मार्ग, गोयला, दीनपुर रोड, पश्चिमी यमुना नहर रोड, वंदे मातरम मार्ग जैसे कई महत्वपूर्ण फ्लाईओवर का वर्तमान में मेंटिनेंस का कार्य चल रहा है। इसमें आईटीपीओ कॉम्प्लेक्स के आसपास के भैरों मार्ग और रिंग रोड़ भी शामिल हैं, जो की कई जी-20 आयोजनों की मेजबानी करेगा। एलजी द्वारा पीडब्ल्यूडी सचिवों के लगातार तबादलों के कारण इन सभी परियोजनाओं में देरी होने का खतरा है। इससे दिल्ली सरकार के विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न हो रही है।

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एलजी द्वारा हर छह महीने में पीडब्ल्यूडी सचिवों को ताश के पत्तों की तरह बदलने और पीडब्ल्यूडी को ‘बिना सिर वाले शरीर’ में बदलने की कार्रवाई की निंदा की। उन्होंने कहा कि दिल्ली के लोक निर्माण विभाग की स्थिति इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे दिल्ली के उपराज्यपाल ने दिल्ली को एक विश्वस्तरीय शहर में बदलने के सीएम अरविंद केजरीवाल के दृष्टिकोण को पटरी से उतारने के लिए सर्विस विभाग का दुरुपयोग किया है। दिल्ली की जनता ने हमें शासन करने के लिए चुना है। दिल्ली के एलजी अच्छी तरह से जानते हैं कि दिल्ली की ढांचागत प्रगति की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर है। विभाग के कार्यों के लिए एलजी जनता के प्रति जवाबदेह नहीं है। इसलिए उन्होंने विभाग के साथ एक खिलौने की तरह खिलवाड़ करना चुना है। कोई सरकार इस तरह कैसे काम कर सकती है?

एलजी के माध्यम से सर्विस विभाग पर केंद्र सरकार की पकड़ को लेकर विवाद इस स्तर तक बढ़ गया है कि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को केंद्र द्वारा नियंत्रित किए जाने पर दिल्ली में चुनी हुई सरकार होने के उद्देश्य पर सवाल उठाया। दिल्ली सरकार ने बार-बार सर्वोच्च न्यायालय के पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के दिनांक 04.07.2018 के फैसले का पक्ष लिया है। जिसमें यह माना गया है कि अनुच्छेद 239एए (4) इंगित करता है कि निर्णय लेने के लिए एलजी में निहित कोई स्वतंत्र प्राधिकरण नहीं है। उन मामलों को छोड़कर जहां वह किसी कानून के तहत न्यायिक या अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण के रूप में अपने विवेक का प्रयोग करता है। वहीं निर्णय आगे यह स्पष्ट करता है कि एलजी को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के आधार पर कार्य करना चाहिए।

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